विनय कुमार गुप्ता
फरेंदा। रबी फसल की कटाई के साथ ही फरेंदा क्षेत्र और इसके आस-पास के कई गांवों में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। खेतों से उठते धुएं के कारण आसमान धुंधला हो रहा है और स्थानीय नागरिकों को सांस संबंधी तकलीफें महसूस हो रही हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार पराली जलाने से वायु में PM 2.5 जैसे सूक्ष्म कणों की मात्रा बढ़ जाती है, जो दमा, एलर्जी और अन्य श्वसन रोगों को बढ़ावा देते हैं। इसके साथ ही यह प्रक्रिया मिट्टी की उर्वरता को भी नुकसान पहुंचाती है।
हालांकि प्रशासन द्वारा किसानों को जागरूक किया जा रहा है और वैकल्पिक उपायों की जानकारी दी जा रही है, लेकिन कई किसानों का कहना है कि संसाधनों की कमी और समय की बाध्यता के चलते पराली जलाना उनकी मजबूरी बन गया है।
पर्यावरणविदों और चिकित्सकों ने लोगों से अपील की है कि वे पराली जलाने से बचें और सरकारी योजनाओं का लाभ लेकर सुरक्षित विकल्पों का प्रयोग करें, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों की रक्षा हो सके।