महराजगंज। शहर से लेकर नेपाल तक मरीज माफिया का संगठित नेटवर्क सक्रिय है, जिसे पकड़ पाना बेहद मुश्किल है। यह नेटवर्क इतना गहरा और सुव्यवस्थित है कि आम लोग इसकी चालाकी को समझ ही नहीं पाते। इसमें झोलाछाप डॉक्टरों को भी शामिल किया गया है, जो प्राथमिक स्तर पर मरीजों को निजी अस्पतालों तक भेजने का रास्ता तैयार करते हैं। इस पूरे सिस्टम में सभी की हिस्सेदारी तय होती है और लेन-देन साप्ताहिक और मासिक आधार पर होता है।
मरीज को भर्ती करने के खेल में छोटे से लेकर बड़े अस्पताल शामिल हैं। ज्यादातर मामलों में शिकायत न होने के कारण यह धंधा-धड़ल्ले से चल रहा है। इस पूरे खेल को समझने के लिए सीमावर्ती क्षेत्र का रुख करना पड़ा। झुलनीपुर के पास एक झोपड़ी में झोलाछाप मिला। उसके पास चार महिलाएं बैठी थीं। वह बड़ी-बड़ी बातें करने में मशगूल था। उसके पास एक बीमार महिला सलाह लेने आई थी। उसे सीने में दर्द हो रहा था। उसने झोले से निकालकर दवा देने के साथ ही गोरखपुर के एक निजी अस्पताल का नाम बताया। उसने मोबाइल से तुरंत निजी अस्पताल में बात की। उसके खेल को वहां कोई समझ नहीं सका। महिला उसकी बातों पर भरोसा कर चली गई।
सूत्रों की माने तो झोलाछाप की साठगांठ बड़े से लेकर छोटे अस्पतालों तक है। बीमारी में जितनी रकम खर्च होती है, उसी हिसाब से मोटा कमीशन भी दिया जाता है। एक झोलाछाप की एक माह की औसतन कमाई करीब 30 से 40 हजार रुपये है। इसमें उनका कुछ भी नहीं लगता है। केस खराब होने के बाद उन पर कोई आरोप भी नहीं लग पाता है।
झोलाछाप डॉक्टर आसानी से अपनी बातों में फंसा लेते है। अपने चहेते अस्पताल में भेजकर मोटी रकम हासिल करते हैं। सूत्रों की माने तो नेपाल से आने वाले मरीजों के नाम पर बड़ा खेल होता है। कुछ अस्पतालों के एजेंट नेपाल में हर माह दौरा कर वहां डॉक्टरों से संपर्क करते हैं। वहां झोलाछाप से लेकर डिग्री वाले डॉक्टरों से हर स्तर से बातचीत की जाती है। प्रति मरीज के एवज में कम से कम दो से पांच हजार की रकम निर्धारित होती है। सामान्य बीमारी होने पर भी मरीज अगर निजी अस्पताल पहुंच गया तो जांच व दवा के नाम पर 12 से 13 हजार खर्च करने पड़ते हैं। इसमें भेजने वाले दलाल का कमीशन भी होता है। इस पूरे खेल को कोई मरीज समझ नहीं पाता है।
सूत्र बताते हैं कि मरीज को नेपाल से चलते ही संबंधित अस्पताल में फोन आ जाता है। इसके बाद संबंधित दलाल के खाते में मरीज का नाम दर्ज हो जाता है। माह भर में मोटी रकम कमीशन के एवज में बन जाती है। खास बात यह है कि अस्पताल तक पहुंचाने के लिए दलाल वाहन की व्यवस्था कर स्वयं ही लेकर बड़े केस में पहुंचते हैं। महराजगंज ही नहीं गोरखपुर के बड़े अस्पतालों तक इनकी दखल होती है। इनके जाल में सबसे अधिक कम पढ़े-लिखे लोग ही फंसते हैं।